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मिथिलाक स्वर्णिम इतिहासक साक्ष्य : कन्दाहाक सूर्य मन्दिर

ओइनिवार शासनक ाल वस्तुत: मिथिलाक मध्यकालीन इतिहासमे स्वर्ण-युग कहयबाक क्षमता रखैत अछि। एहि राजवंशक शासनकालमे मिथिलाक साहित्य, कला, संस्कृति, स्थापत्यक क्षेत्रमे अभूतपूर्व प्रगति आ प्रयोग सब भेल जे आइयो कतहु सम्पूर्ण रुपमे तँ कतहु अवशिष्ट रुपमे विद्यमान अछि। ओइनिवारकालीन सांस्कृतिक धरोहरमेसँ एकटा अछि सहरसा जिलान्तगर्त कन्दाहाक सूर्य मन्दिर। ई प्राचीन मन्दिर आइ मिथिला निवासी ओ सरकारक उदासीनताक कारण उपेक्षित पड़ल अपन अस्तित्वक रक्षाक हेतु जेना मूक चीत्कार कऽ रहल अछि। सहरसा जिला मुख्यालयसँ मात्र सात-आठ किलोमीटर पच्छिममे अछि कन्दाहा। 2008 इ.क मइमे कन्दाहा जेबाक अवसर भेटल छल। महिषीक उग्रतारा भगवतीक दर्शन कऽ घुरबाकाल कन्दाहा गेल रही। जर्जर सड़कक चोट सहैत कन्दाहा सूर्य मन्दिर परिसरमे पहुँचल रही। छहरदेवालीसँ घेरल परिसरमे एकटा बेस ऊँच ढिमकापर तिरहुत स्थापत्य शैलीमे बनल छोट सन मन्दिर, मुदा मन्दिरक भीतर स्थापित कारी पाथरक सूर्य मूर्तिक जे विशालता अछि, तकरा आगाँ मन्दिर बड़ झुझुआन सन लागल। लगभग पन्द्रह फीट ऊँच कारी पाथरक मन्दिराकार सिंहासनक मध्य तीन गुणे एक फीटक सूर्य मूर्ति स्थापित। सात घोड़ावाला रथपर आरूढ़ भगवान सूर्य अभयमुद्रामे ठाढ़। पैरमे ठेहुन धरि बूट। रथक चक्का उत्कीर्ण ओ सारथीक रुपमे बैसल अरुणक हाथमे घोड़ाक बाग। दुनू दिस उषा आ प्रत्युषा ठाढ़ि। सूर्यक माथपर टोपनुमा शिरोमुकुट। हुनक अंग-प्रत्यंगमे आभूषण सब उत्कीर्ण। निश्चित रूपसँ ई मूर्ति अत्यन्त कलात्मक अछि। ततबे कलात्मक अछि एकर मन्दिराकार सिंहासन। सिंहासनमे दुनू दिस कलात्मक पाया, तकरा ऊपरमे मेहराओ। एहि सिंहासनमे अत्यन्त आकर्षक तिलिया-फुलिया सब उत्कीर्ण जे सहजहिँ ध्यानकेँ आकृष्ट कऽ लैत अछि आ मिथिला शैलीक मूर्तिकलाक भव्यताक साक्षी अछि। सिंहासनक मेहराओक शीर्षपर एकटा ‘मेष’ आकृति उरेहल। बारह गोट राशिमेसँ एकमात्र ‘मेष’ राशिक एहि मूर्तिमे अकनकेँ एकर विशेषता कहल जयबाक चाही। मन्दिरक छोट सन गर्भगृहमे स्थापित एहि मूर्तिकेँ देखलासँ प्रतीत होइछ जे अवश्ये ई मन्दिर कहियो विशाल रहल होयत। मन्दिर परिसरमे छहरदेवाली अछि से पुरान ईटक आ बेस चौड़ा बुझना जाइत अछि जे कहियो मन्दिर बेस पैघ रहल होयत। कोनो प्राकृतिक प्रकोप किंवा आक्रान्ताक आक्रमणक कारण पहिलुका भव्य मन्दिर नष्ट भऽ गेल होयत। पछाति कोनो स्थानीय सामन्त वा जमीन्दार द्वारा एहि वर्तमान छोटका मन्दिरक निर्माण कयल गेल होयत। मन्दिर परिसरक अवलोकनसँ यैह प्रतीत होइछ जे अवश्ये मध्यकालमे ई मन्दिर मुसलमानी आक्रान्ताक शिकार बनल छल। किएक तँ मुख्य सूर्य मन्दिर आ परिसरमे स्थित अन्य मन्दिरमे कारी पाथरक बहुतो भग्न प्रतिमा सब पड़ल अछि। तहिना कारी पाथरक टूटल चौखटि आ स्तम्भ सभ सेहो अछि। मन्दिरक देख-रेख एकटा पण्डा द्वारा कयल जाइत अछि। पण्डा मैथिल ब्राह्मन छथि आ कतोक पुश्तसँ एहि मन्दिरसँ ओ लोकनि जुड़ल छथि। पण्डाजी कहलनि जे मन्दिर परिसर स्थित इनारक उड़ाहीक क्र ममे पाथरक अनेक भग्न प्रतिमा सब बहरायल छल जकरा सबकेँ गौंआ द्वारा एकटा कोठली बना कऽ स्थापित कऽ देल गेलैक। इनारक सम्बन्धमे पण्डाजी कहलनि जे एकर जल चमत्कारी छैक जकरा पिउलासँ केहनो-केहनो रोग ठीक भऽ जाइत छैक। हम स्वयं ओहि इनारक जल पीबि कऽ देखलहुँ वास्तवमे जल अत्यन्त स्वादिष्ट छल। एहि मन्दिरक निर्माण कहिया भेल आ के करौलनि? से किछु कहबामे पंडाजी असमर्थ रहथि। हुनक द्वापर आ त्रेताक वृतान्त सहजे ग्राह्य नहि। एतबे नहि सहरसाक जानल-मानल बुद्धिजीवी, पुरावेत्ता ओ इतिहासकार लोकनि पर्यन्तकेँ एहि अद्भुत पुरातात्विक स्थलक सम्बन्धमे कोनो सुनिश्चित सूचना नहि। जनिकेसँ कोनो जिज्ञासा कयलियनि तँ हुनक उत्तर डपोरशंख सन ओझड़ा कऽ मारि देबऽवला। मुदा एहन गप्प नहि अछि जे कन्दाहाक ई सूर्य मन्दिर एखन धरि रहस्ये बनल अछि। 1934 इ. मे काशीप्रसाद जयसवाल एहि मन्दिरक अवलोकन ओ विशलेषण कयने रहथि। एहि मन्दिरक इतिहासपर आधृत हुनक एकटा शोध-पत्र बिहार एवं उड़ीसा रिसर्च सोसाइटीक जर्नलमे प्रकाशित भेल छल। ओहि शोध-पत्रमे ओ एहि मन्दिरमे उत्कीर्ण एकटा अभिलेखक पाठोद्धार कऽ एहि तथ्यकेँ प्र्रकाशमे अनने रहथि जे ओइनिवार वंशीय नरेश नरसिंहदेव चौदहम शताब्दीक मध्यमे भवादित्य नामसँ एहि मन्दिरमे सूर्यक स्थापना कयने रहथि। निश्चित रुपसँ ओहि अभिलेखक अन्वेषण कयल जयबाक चाही। जायसवालक उक्त लेखक आधारपर बहुतो विद्वान अपन पोथीमे लिखि देलनि जे उक्त अभिलेख प्रतिमाक पाद पीठमे उत्कीर्ण अछि। मुदा पादपीठमे तकला उत्तर ओ किए भेटत? पण्डाजीकेँ सेहो ई सब किछु नहि बूझल। हठात मन्दिरक गर्भगृहमे लागल कारी पाथरक चौखटिपर दृष्टि जाइत अछि। चौखटिपर तीन दिस तिरहुता लिपिमे किछु अभिलेख उत्कीर्ण भेटल। पाथरक चट सब ओदरि जयबाक कारणेँ अभिलेख भखड़ल सन लगैत अछि। तथापि परिश्रम ओ आयास कऽ कऽ ओकरा पढ़ल जा सकैत अछि। अभिलेखक जतबा अंश पाठ्य योग्य अछि से निम्नवत अछि- पृथ्वीपतिद्विजवरो भव (सिंह आ) सी- दाशीविषेन्द्रवपुरुज्ज्वलकीर्तिराशि:। तस्यात्मज: सकलकृत्य विचारधीरो- वीरो (ब)भूव वि (दितो ह) रि सिंहदेव:। (दो:) स्तम्भद्वयनिर्जिताहित नृपश्रेणीकिरीटोपल- ज्योत्स्नावर्धित पादपल्लवनख श्रेणीमयूखावलि:। दाता तत्तनयोद्यशास्त्रविधिन भूमण्डलं पालयन् धीर: श्रीनरसिंहभूपतिलक: कान्तोऽधुना राजेत। निदेशतोस्यायतनं रवेरिदमचीकत। बिल्वपञ्चकुुलोद्भूत: श्रीमद्वंशधर: कृती। ज्येष्ठे मासि शकाब्दे शराश्वमदनांकितेस्य गिरा। बुध पाटकीय चन्द्र: कृ तवानेतानि पद्यानि।।

एहि शिलालेखमे शक संवतक उल्लेख अछि जकर व्याख्याक प्रयोजन अछि। ‘शराश्वमदन’ क व्याख्या कयला उत्तर- शर-5, अश्व-7 आ मदन-13 होइत अछि। अर्थात शकाब्द 1375 भेल। एहिमे जँ 78 जोड़ल जाय तँ ई 1453 इ. होइत अछि। एहि तरहेँ एहि मन्दिरक निर्माण लगभग साढ़े पाँच सए वर्ष पूर्व भेल छल। मन्दिरक ई शिलालेख इतिहासपर पड़ल बहुत रास परदा सबकेँ उठबैत अछि। निश्चित रुपसँ मूर्तिक विशालता कहैत अछि जे एतऽ कहियो विशाल मन्दिर रहल होयत जकर न्योँ ओ देवालक अवशेष एखनहुँ अछि। एहि परिसरमे सूर्य सहित अन्यो देवी-देवता लोकनिक मन्दिर छलनि। सम्भवत: मिथिलाक पञ्चदेवोपासना परम्पराक अनुरुप एतऽ पञ्चायती मन्दिर छल। मन्दिर परिसर स्थित कोठलीमे अनेक भग्न प्रतिमा सब अछि ताहूपर किछु-किछु अभिलेख सब दृष्टिगोचर होइत अछि। एहि मन्दिरपर कहियो विधर्मीक आक्रमण भेल छल जाहिमे प्राचीन मन्दिर ध्वस्त भऽ गेल। मन्दिरमे अवस्थित सूर्यक प्रतिमाक सिंहासनक मेहराओ टूटल अछि जकरा प्रतिमाक पुनर्प्रतिष्ठाक समयमे गओँसँ बैसा देल गेल से ओहिना बुझाइत अछि। मन्दिरसँ किछुए दूरीपर एकटा कर्बला अछि आ एकटा विशाल माटिक ढिमका अछि जे सुजातगढ़ीक नामसँ प्रसिद्ध अछि। ई सब एहि मन्दिरकेँ मुसलमानी आक्रमणक निशाना बनब प्रमाणित करैत अछि। कन्दाहाक सूर्य मन्दिर ओ एकर शिलालेख ओइनिवारकालीन मिथिलाक इतिहासपर नवीन दृष्टिएँ सेहो सोचबाक लेल विवश करैत अछि। ओइनिवार राजवंशक वंशावलीमे बहुतो इतिहासकार लोकनि नरसिंहदेवक नाम विलोपित कऽ देने छथि। शिवसिंहक उपरान्त पद्मसिंह ओ हुनक पत्नी विश्वासदेवी मिथिलापर शासन कयलनि। मुदा विश्वासदेवीकेँ कोनो सन्तान नहि छलनि तेँ ओ पद्म सिंहक पितियौत भाय अर्थात भवसिंहक पौत्र ओ देवसिंहक छोट भाय हरिसिंहक पुत्र नरसिंह दर्पनारायणकेँ अपन उत्तराधिकारी बनौलनि। नरसिंह जेहने पराक्र मी छलाह तेहने साहित्य-संस्कृति ओ कलाक संरक्षक। एहि महाराज नरसिंहक आश्रयमे रहि महाकवि विद्यापति ‘विभागसार’ नामक ग्रन्थक रचना कयलनि जकर मंगल श्लोकमे नृपतिक रुपमे नरसिंहक प्रशस्ति गायन भेल अछि। नरसिंहक पत्नी रहथिन परमविदुषी धीरमती। विद्यापति एहि धीरमतीक आज्ञासँ दानवाक्यावलीक रचना कयलनि जाहिमे हिनक विद्वता ओ दानशीलताक भूरि-भूरि प्रशंसा भेल अछि। धीरमती अपना समयक एकटा निविष्ट कवयित्री सेहो छलीह जनिक अनेक मैथिली पद सभ हालमे आविष्कृत भेल अछि। अपन एकटा पदमे धीरमती अपन पति नरसिंहक नामाल्लेख करैत लिखैत छथि- धीरमती पद गाओल रे, रस बुझ रसमन्ते। नृप नरसिंह रसनागर रे, जन्हि पाओल कन्ते।। निश्चित रुपसँ ओइनिवार वंशक एहि प्र्रतापी नरेश दम्पतीक शासन कालमे जँ एक दिस संस्कृत विद्या ओ साहित्य समृद्ध भेल तँ दोसर दिस स्थापत्य कलाकेँ सेहो तहिना प्रोत्साहन भेटलैक। एकर प्रमाण अछि नृप नरसिंह निर्मित कन्दाहाक भव्य सूर्यमूर्ति जकर मन्दिर सेहो तेहने भव्य रहल होयत। पुरनका मन्दिरमे प्रयुक्त अलंकृत प्रस्तर खण्ड ओ चौखटिक किछु अंश वर्तमानहुँ मन्दिरमे लागल अछि। मुदा मिथिलाक इतिहासक ई धरोहरि आइ अरक्षित टूअर-टापर जकाँ पड़ल अछि। यद्यपि बिहार सरकार 1979 मे एकरा पुरातात्विक सम्पति घोषित कऽ चुकल अछि। मुदा ई घोषणा मात्र कागजी अछि। ने तँ मिथिलाक एहि एकमात्र सूर्य मन्दिरक संरक्षण-संवर्द्धनक क ोनो योजना सरकार लग छैक आ ने स्थानीय जनप्रतिनिधि लोकनिकेँ तकर कोनो चिन्ते छनि। प्रयोजन तँ छल एहि मन्दिरकेँ पर्यटन स्थलक रुपमे विकसित कयल जैतय। पुरातत्व विभाग द्वारा एकर खोदाइ कयल जैतय। एहि मन्दिरक मूर्ति जे निरन्तर पानि ओ सिन्दूर पड़लाक कारणे विनष्ट भऽ रहल अछि। ताहि दिस लोककेँ सचेत कयल जैतय एहि मन्दिर ओ एहिसँ जुड़ल इतिहासके ँ सामने आनल जैतय। मुदा एतेक काज के करत? एहि लेल ककरा पलखति छैक। तखन अपना भाग्येँ जतेक दिन धरि ई धरोहर बचल जा रहल अछि तकरा की कम कहल जा सकै त छैक?

BY:-डॉ. शंकरदेव झा

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