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A SHORT NOTE BY PROF.RUDRANAND JHA


-:सूर्य मंदिर कन्दाहा:-

(एक संक्षिप्त परिचय )

मिथिलान्तार्गत कोशी एवं धर्ममूला नदी के बीच अवस्थित एक छोटा सा गाँव कन्दाहा की पुण्यमयी धराधाम धराधाम में अवस्थित संपूर्ण विश्व की अद्वितीय सुर्यमूर्ती जो कि द्वापर युगीन है, की एक अनोखी गाथा है | सर्वप्रथम इस प्राचीन धरोहर को संजोकर रखनेवाला कन्दाहा गाँव का प्राचीन नाम कंदर्पदहा था, जिसका शाब्दिक अर्थ है- कंदर्प (कामदेव) का जहां दहन हुआ हो| पुराणों के अनुसार श्री शिवजी के द्वारा कामदेव का दहन इसी कन्दाहा की धरती पर किया गया था ,अतः इस जगह का नाम कंदर्पदहा पड़ा जो कालांतर में कन्दाहा में परिणत हो गया |

मूर्तिपरिचय:-

कन्दाहा की सूर्यमूर्ति प्रथम राशि मेष की है, जिसका प्रमाण सिंहाशन पर मेष का चिन्ह होना है | पांच फीट की सूर्यमूर्ति आठ फीट के सिंहाशन में सात घोड़ों के रथ पर अपनी दोनों पत्नियाँ , संज्ञा एवं छाया, जिनको विभिन्न पुरानों में विभिन्न नाम दिया गया है , के साथ विराजमान हैं, जिसका संचालन सारथी अरुण कर रहें हैं , साथ hi बाएं भाग में संवत्सर चक्र भी विद्यमान है | भगवन सूर्य के दो हाथ हैं ,जिसमें कमल का फूल दृष्टिगोचर होता है ,जिसमे बायाँ हाथ मुग़ल आतताइयों द्वारा खंडित कर दिया गया था | सिंहाशन की अद्भुत कलाकृति तो देखते ही बनता है | सूर्यमूर्ति के दायें भाग में अष्टभुज गणेश एवं बाएं भाग में शिवलिंग और सामने श्री सुर्ययंत्र रखा हुआ है | गर्भगृह के द्वार पर चौखट पर उत्कीर्ण कलाकृति एवं लिपि भी अपने आप में बेमिशाल है |लेकिन दुर्भाग्यवश सभी मूर्तियों को मुगलों द्वारा कुछ न कुछ क्षति पहुचाई गयी है |

स्थापना:-

पुराणों के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण की पटरानी जाम्बवती के पुत्र साम्ब अतीव सुन्दर थे जिनके द्वारा श्री कृष्ण से मिलने आये महर्षि दुर्वाशा का तिरस्कार कर दिया गया और क्रोधित महर्षि दुर्वाषा साम्ब को कुष्ठ रोग से रूपक्षीण होने का श्राप दे बैठे |अब संपूर्ण यदुवंशी परिवार व्यथित हो गए | दैवयोग से नारद जी के आने पर उनके द्वारा साम्ब से सूर्य का तप करने को कहा गया और तत्पश्चात

साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के किनारे सूर्य का कठोर ताप किया और जिसके फलस्वरूप भगवान् सूर्य प्रसन्न होकर उन्हें रोगमुक्त कर दिए| रोगमुक्त करने के साथ ही भगवान् भास्कर ने साम्ब को बारहों राशि में सूर्यमूर्ति की स्थापना का आदेश भी दिया | इसी क्रम में प्रथम मेष राशि के सूर्य की स्थापना हेतु तत्कालीन ज्योतिषियों की गणना के द्वारा श्री शिवजी की तपस्थली इसी कन्दाहा गाँव का चयन हुआ और द्वापर युग में श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब के द्वारा कन्दाहा (कन्दर्पदहा ) में प्रथम राशि मेष के सूर्य की स्थापना हुई और ऋषि मुनियों द्वारा युगांतर से इनकी पूजा होती आ रही है |

युगों बाद चौदहवीं सदी में जब मिथिला राज्य के क्षितिज पर ओईनवार वंशीय ब्राह्मण भवसिंहदेव राजा के रूप में उदित हुए और और दैवयोग से रोगग्रस्त हो गए तो उनके दरबारपंडित (लेखक के पूर्वज) पंडित बेचू झा की सलाह पर सूर्य भगवान् का पूजन एवं अनुष्ठान आरम्भ हुआ ,इस क्रम में महाराजा द्वारा सूर्यमंदिर के प्रांगन में अवस्थित सूर्य-कूप के औषधीय गुण संपन्न जल से स्नान एवं सेवन किया गया जिससे महाराज पूर्ण स्वस्थ हो गए एवं सुयोग्य दो पुत्र नरसिंहदेव एवं हरिसिंहदेव को प्राप्त कर अत्यंत हर्षित होकर जीर्ण पड़े मंदिर का जीर्णोद्धार एवं मूर्ती की पुनर्स्थापना कर भगवान् आदित्य के नाम से अपना नाम जोड़कर भवदित्य सूर्य का नाम दिया और तब से भवादित्य सूर्य के नाम से कंदहा में भगवान् सूर्य की पूजा अर्चना होने लगी | कंदहा गाँव सहरसा मुख्यालय से पश्चिम १२ किमी पर सतरवार (गोरहो) चौक से तीन किमी उत्तर पक्की सड़क से जुड़ा हुआ है जहाँ हजारों भक्तजन आते है और भगवान् भास्कर की पूजा अर्चना कर मनचाहा फल पाते हैं |

लेखक :- प्रो० रुद्रानंद झा

( पुजारी-सूर्य मंदिर कन्दाहा )

मोबाइल- +917250417145

ज़रा ये भी देखें :- http://suntemplekandaha.wix.com/kandaha

http://facebook.com/suntemplekandaha

(अपने विचार हमें E-mail करें – kumarkrishna@accountant.com)

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