प्रशासनिक पहल
क्या कहती है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अध्ययन
1985 में इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहतचयनित है.
सूर्य मंदिर कंदाहा की मूर्ति न सिर्फ काले पत्थर की कलात्मक सूर्य कीमूर्ति है बल्कि काफी दुर्लभ भी है॰ प्रतिमा के अंदर कृष्ण की दो पत्नियां संज्ञा व कल्हा, सात घोड़ों और चौदह लगाम(बागडोर) के साथ सूर्य से पता चलता है कि किस शताब्दी की यह सूर्य मंदिर है. एक अदूतीय पंख लगी है . मूर्ति की विशेषता यह भी कि बहुत ही दुर्लभ है. इसकी कलात्मकता की सूक्ष्मता से लगता है की मिट्टी की तरह नरम पत्थर से यह निर्मित है. ऐसीविशेषता कोणार्क या देव के मूर्ति में ही हो सकता है॰ ऐसी विशेषता और कहीं नहीं देखा जा रहा है.
विकास व सौंदर्यकरण की पहल
इस मंदिर के जीर्णोधार के लिए बिहार सरकार के तत्कालीन कला-संस्कृति एवं युवा विभाग मंत्री अशोक कुमार सिंह ने पुरातत्व निदेशालय पटना द्वारा 11 फरवरी 2004 को कन्दाहा सूर्य मंदिर सहरसा के विकास एवं सौंदर्यकरण योजना का शिलान्यास कर पर्यटन को बढ़ावा देने की पहल की गयी॰ उसके बाद किसी ने कन्दाहा सूर्य मंदिर के विकास के लिये कभी भी सार्थक प्रयास नहीं किया.
उदासीन है ज़िला प्रशासन
मंदिर के विकास के लिए जिला प्रशासन भी काफी उदासीन है. यहां तककि लोक आस्था के महापर्व सूर्योपासना (छठ) के मौके पर भी आसपास के घाट व सूर्य मंदिर की साफ-सफाई और रंग-रोगन जिला प्रशासन की ओर से नहीं करवायी जाती है॰ इस दिशा में कदम उठाई जानी चाहिए॰ इस मौके पर मेले का भी आयोजन किया जाना चाहिए॰ लेकिन ऐसा नहीं किया जाता है॰ कुछ खास लोगों के प्रयास से इसकी व्यवस्था की जाती है॰ लेकिन जिला प्रशासन व सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को जनहित में इसकी जरुरतमहशूस नहीं होती है.
मंदिर का मुख्य गेट